Note: This lesson is to help you figure out what समास words mean whenever you come across them in your course of reading. You also now have the wherewithal to form your own combination words intelligently. |
in the above table we have listedb the avyayas followed by the samasta pada to which the avaya is attached as a prefix and the vigraha which is the explanation of or breaking the samasta pada
Addition of अव्ययम् to mean | समस्तपदम् | विग्रहः |
अधि in, on | अधिहरिम् | हरौ इति |
उप closeness | उपकृष्णम् | कृष्णस्य समीपम् |
निस् or निर् absence | निर्जनम् | जनानाम् अभावः |
अनु behind/ following
|
अनुरथम् |
रथस्य पश्चात्
|
प्रति every |
प्रतिदिनम्
|
दिनं दिनम् |
यथा in that manner |
यथाशक्ति no spelling error here. There is no visarga. All these words are अव्यय s remember? | शक्तिमनतिक्रम्य |
स with/ resembling |
सजनकम्
|
जनकेन सह /जनकस्य सादृश्यम् |
आ beyond / upto / from-to |
आहिमालयम् आबालवृद्धम् (from child to elderly) |
आ हिमालयात् (चीनदेशः) बालतः वृद्धपर्यन्तम् |
बहिः outside | बहिर्ग्रामम् | ग्रामात् बहिः |
अनु near/ towards | अनुकूलम् |
कूलम् अभि towards the bank (River bank)
|
प्रति a) away from (opposite of the meaning in the above row)
b) repetition |
प्रतिकूलम्
प्रतिदिनम्
|
विपरीतं कूलम् against the bank (River bank)
दिने दिने
|
सु abundance, prosperity | सुमद्रम् | मद्राणां समृद्धिः |
दुर् adversity, poverty | दुर्यवनम् | यवनानां वृ्युद्धिः |
अति destruction, end of | अतिहिमम् | हिमस्य अत्ययः |
अति inappropriate | अतिनिद्रम् | निद्रा सम्प्रति न युज्यते |
इति utterance of sound | इति हरि
|
हरिशब्दस्य प्रकाशः |
आ a) starting from b) uptil |
a) आजन्म |
a) जन्मनः आरभ्य b) मरणपर्यन्तम् |
Note: The word तत्पुरुषः itself will help you remember what समासः this involves.तस्य पुरुषः = तत्पुरुषः!! |
द्वितीयातत्पुरुषः | समस्तपदम् | विग्रहः |
: | शरणागतः | शरणम् आगतः |
दुःखातीतः |
दुःखम् अतीतः | |
कृष्णाश्रितः | कृष्णम् आश्रितः | |
ग्रामप्राप्तः |
ग्रामं प्राप्तः | |
शोकपतितः | शोकं पतितः | |
मेघात्यस्तः | मेघम् अत्यस्तः | |
भयापन्नः
|
भयम् आपन्नः | |
ग्रामगमी |
ग्रामं गमी | |
अन्नबुभुक्षुः
|
अन्नं बुभुक्षुः |
तृतीयातत्पुरुषः | समस्तपदम् | विग्रहः |
बाणाहतः | बाणेन आहतः | |
खड्गाहतः | खड्गेन आहतः | |
शिवात्रातः | शिवाया त्रातः | |
शिवत्रातः
|
शिवेन त्रातः | |
विद्याहीनः | विद्यया हीनः | |
ज्ञानशून्यः | ज्ञानेन शून्यः | |
मातृसदृशः | मात्रा सदृशः | |
पितृतुल्यः
|
पित्रा तुल्यः | |
हरित्रातः | हरिणा त्रातः | |
तत्कृतम् | तेन कृतम् | |
कालिदासरचितम् | कालिदासेन रचितम् | |
मासपूर्वः | मासेन पूर्वः | |
भ्रातृसमः
|
भ्रात्रा समः | |
धान्योनम् | धान्येन ऊनम् | |
धान्येविकलम् | धान्येन विकलम् | |
वाक्कलहः | वाचा कलहः | |
आचारकुशलः | आचारेण कुशलः | |
शर्करामिश्रम्
|
शर्करया मिश्रम् | |
गुडयुक्तम् | गुडेन युक्तम् | |
कुट्टनश्लक्षणम् | कुट्टनेन श्लक्षणम् | |
मासावरः | मासेन अवरः |
And that is the sole reason why you cannot have दण्डेताडितवान् as a तृतीयातत्पुरुषः ताडितवान् is a Present active participle and doesn't fit with the rules stated above. Instead, you may have a दण्डताडितः Gottit?
चतुर्थीतत्पुरुषः | समस्तपदम् | विग्रहः |
कुण्डलहिरण्यम् |
कुण्डलाय हिरण्यम् | |
यूप दारु | यूपाय दारु | |
कुम्भमृत्तिका
|
कुम्भाय मृत्तिका | |
द्विजार्थः eg: सूपः |
द्विजाय अयम् | |
छात्रार्था
eg: यवागूः |
छात्राय इयम् | |
शिश्वर्थम् eg: दुग्धम् |
शिशवे इदम् | |
भूतबलिः | भूतेभ्यो बलिः | |
गोहितम् |
गवे हितम् |
Note: The compound गुरुदक्षिणा cannot be separated into गुरवे दक्षिणा The विग्रहः has to be गुरोः दक्षिणा | |
पञ्चमीतत्पुरुषः | समस्तपदम् | विग्रहः |
चोरभयम् | चोरात् भयम् | |
वृकभीतिः | वृकात् भीतिः | |
व्याघ्रभीतः | व्याघ्रात् भीतः | |
अयशोभीः | अयशसः भीः | |
ग्रामनिर्गतः | ग्रामात् निर्गतः | |
अधर्मजुगुप्सुः | अधर्माद् जुगुप्सुः | |
स्वर्गपतितः | स्वर्गात् पतितः | |
पापमुक्तः | पापात् मुक्तः | |
Exceptions | अन्तिकादागतः | अन्तिकात् आगतः |
दूरादागतः | दूरात् आगतः (दूर) | |
स्तोकान्मुक्तः | स्तोकात् मुक्तः (स्तोक) |
षष्ठीतत्पुरुषः | समस्तपदम् | विग्रहः |
राजपुरुषः | राज्ञः पुरुषः | |
देवपूजकः | देवस्य पूजकः | |
ईश्वरभक्तः | ईश्वरस्य भक्तः | |
देवालयः | देवस्य आलयः | |
सर्वमहान् | सर्वेषां महत्तरः | |
सर्वश्वेतः | सर्वेषां श्वेततरः | |
Exceptions | अन्नस्य पाचकः (अक प्रत्ययः) | |
धनस्य हर्ता (तृच् प्रत्ययः) | ||
जगतः स्रष्टा ( तृच् प्रत्ययः)
|
||
घटस्य कर्ता ( तृच् प्रत्ययः) | ||
ब्राह्मणस्य कर्तव्यम् (तव्य प्रत्ययः ) | ||
ब्राह्मणस्य कृत्वा (अव्यय ) | ||
राज्ञां पूजितः ( क्त प्रत्ययः added to पूज् ) |
सप्तमीतत्पुरुषः | समस्तपदम् | विग्रहः |
वीणाप्रवीणः | वीणायां प्रवीणः | |
वेदपण्डितः | वेदे पण्डितः | |
काव्यकुशलः
|
काव्ये कुशलः | |
शास्त्रनिपुणः | शास्त्रेषु निपुणः | |
कार्यचपलः | कार्ये चपलः | |
जललीनः
|
जले लीनः | |
जलमग्नः | जले मग्नः | |
कार्यचतुरः
|
कार्ये चतुरः | |
स्थालीपक्वः | स्थाल्यां पक्वः |
प्रादि तत्पुरुषः | समस्तपदम् | विग्रहः |
प्राचार्यः | प्रगतः आचार्यः | |
प्रपितामहः | प्रगतः पितामहः | |
अतिमर्यादः | अतिक्रान्तः मर्यादाम् | |
प्रत्यक्षः | प्रतिगतः अक्षम् | |
उद्वेलः | उद्गतः वेलाम् | |
निर्गृहः | निर्गतः गृहात् |
Note: Why has this particular समासः been called कर्मधारय ? Simple. Let's look at an example…नीलोत्पलम् | उत्पलं नीलवर्णं धारयति |नीलं becomes the object in the sentence. Similarly, गुरुदेवः | गुरुः देवस्य पदं धारयति |Alternatively it could be:देवः गुरोः रूपं धारयति | If you look at the examples in the tabular column, you'll begin to see how one of the words "becomes" the object of the other. Even if that may not be an authentic explanation, why must we reject it if it helps us remember what the कर्मधारयसमासः is?!! |
कर्मधारयसमासः | समस्तपदम् | विग्रहः |
महादेवः
|
महान् च असौ देवः | |
कृष्णसर्पः |
कृष्णः सर्पः
|
|
नीलोत्पलम् | नीलम् उत्पलम् | |
दीर्घरज्जुः | दीर्घा रज्जुः | |
कुसुमकोमलम् | कुसुमम् इव कोमलम् | |
चन्द्रमुखम् | चन्द्र इव मुखम् | |
मुखपद्मम् | मुखं पद्मम् इव | |
मुखकमलम् | मुखं कमलम् इव | |
पुरुषसिंहः | पुरुषः सिंहः इव | |
कृष्णश्वेतः
|
कृष्णश्च श्वेतश्च (both are adjectives) | |
स्नातानुलिप्तः | स्नातश्च अनुलिप्तश्च (क्त प्रत्ययान्त विशेषण ) | |
चराचरम्
|
चरञ्च अचरञ्च (opposites) | |
गुरुदेवः | गुरुः एव देवः | |
विद्याधनम्
|
विद्या एव धनम् | |
तपोधनम् | तपः एव धनम् | |
वेदसम्पत्
|
वेद एव सम्पत् | |
अयोध्यानगरी | अयोध्या इति नगरी | |
आम्रवृक्षः
|
आम्र इति वृक्षः | |
कुपुत्रः | कुत्सितः पुत्रः | |
कुमाता
|
कुत्सिता माता | |
सुपुरुषः | शोभनः पुरुषः | |
सुजनः | शोभनः जनः | |
स्वागतम्
|
शोभनम् आगतम् |
द्विगुसमासः | . समस्तपदम् | विग्रहः |
पञ्चगवम् | पञ्चानां गवां समाहारः | |
पञ्चपात्रम् | पञ्चानां पात्राणां समाहारः | |
त्रिभुवनम् | त्रयाणां भुवनानां समाहारः | |
चतुर्युगम् | चतुर्णां युगानां समाहारः | |
सप्ताहः | सप्तानाम् अह्नां समाहारः | |
नवरात्रम् /नवरात्री | नवानां रात्रीणां समाहारः | |
त्रिलोकी | त्रयाणां लोकानां समाहारः(अकारान्त-लोक –केवलं –स्त्रीलिङ्गे ) | |
पञ्चमूली | पञ्चानां मूलानां समाहारः (अकारान्त – मूल –केवलं –स्त्रीलिङ्गे ) | |
पञ्चवटी | पञ्चानां वटीनां समाहारः (अकारान्त – वट –केवलं –स्त्रीलिङ्गे) | |
शताब्दी | शतानाम् अब्दानां समाहारः | |
षण्मातुरः |
षण्णां मात्तृृणाम् अपत्यम् |
|
द्वैमातुरः
|
द्वयोः मात्रोः अपत्यम् | |
पञ्चगवधनः | पञ्च गावः धनं यस्य सः | |
पञ्चखट्वी / पञ्चखट्वम् | पञ्चानां खट्वानां समाहारः (आकारान्त खट्वा ) |
समस्तपदम् |
विग्रहः
|
हरिहरौ | हरिश्च हरश्च ( इकारान्त words before अकारान्त ) |
ईशकृष्णौ | ईशश्च कृष्णश्च |
अश्वरथेन्द्राः /इन्द्राश्वरथाः | अश्वश्च रथश्च इन्द्रश्च / इन्द्रश्च अश्वाश्च रथाश्च |
शिवकेशवौ |
शिवश्च केशवश्च
|
ग्रीष्मवसन्तौ
|
ग्रीष्मश्च वसन्तश्च |
हेमन्तशिशिरवसन्ताः | हेमन्तश्च शिशिरश्च वसन्तश्च |
मातापितरौ | माता च पिता च |
पाणिपादम् | पाणि च पादौ च एतेषां समाहारः |
रथिकाश्वारोहम्
|
रथिकाश्च अश्वारोहाश्च एतेषां समाहारः |
काकोलूकम् | काकश्च उलूकश्च अनयोः समाहारः |
पुत्रपौत्रम् | पुत्रश्च पौत्रश्च अनयोः समाहारः |
दासीदासम् | दासी च दासश्च अनयोः समाहारः |
When similar things are put together and the entire compound is described by just one of the words, either in the dual or plural,एकशेषः is seen.
समस्तपदम् | विग्रहः |
वृक्षौ | वृक्षश्च वृक्षश्च |
पितरौ | माता च पिता च |
भ्रातरौ | भ्राता च स्वसा च |
पुत्रौ | पुत्रश्च दुहिता च |
हंसौ | हंसश्च हंसी च |
तौ | सः च रामश्च |
यौ | सः च यश्च |
भवन्तः
|
भवन्तश्च भवन्तश्च |
वयम् | यूयं च वयं च |
रामौ | रामश्च रामश्च |
Note: The word बहुव्रीहिः itself means "a person who has plenty of rice". In other words, a wealthy man. A long time ago, parents would give their daughter in marriage to Mr. बहुव्रीहिः who would have the capacity to look after their child well. It won't be difficult now to connect this word to what the समासः implies. |
same विभक्ति | समस्तपदम् | विग्रहः |
प्राप्तोदकः | प्राप्तम् उदकं येन सः | | |
हतशत्रुः (राजा ) |
हता शत्रवः येन सः |
|
|
कृतभोजनः | कृतं भोजनं येन सः| | |
अधीतकाव्या | अधीतं काव्यं यया सा | | |
धृतपुष्पा | धृतानि पुष्पाणि यया सा | | |
दत्तभोजनः ( भिक्षुकः ) | दत्तं भोजनं यस्मै सः | | |
उद्धतौदना (स्थाली ) | उद्धतः ओदनः यस्याः सा | | |
पतितपर्णः (वृक्षः ) | पतितानि पर्णानि यस्मात् सः | | |
गलितपुष्पा (लता) | गलितानि पुष्पाणि यस्याः सा | | |
रुपवद्भार्यः | रूपवती भार्या यस्य सः | | |
गङ्गाभार्यः | गङ्गा भार्या यस्य सः| | |
दृढाभक्तिः | दृढा भक्तिःयस्य सः | | |
similarly : पीताम्बरः ,दशाननः , चतुराननः ,चतुर्मुखः , पद्मयोनिः | ||
वीरपुरुषः (ग्रामः ) | वीराः पुरुषाः यस्मिन् सः | |
Differentविभक्तिःs | समस्तपदम् | विग्रहः |
गदापाणिः | गदा पाणौ यस्य सः | | |
गडुकण्ठः | गडुः कण्ठे यस्य सः | | |
भालचन्द्रः | भाले चन्द्रः यस्य सः | | |
चन्द्रमौलिः | चन्द्रः मौलौ यस्य सः | | |
विषकण्ठः |
विषं कण्ठे यस्य सः |
|
|
कण्ठेकालः | कण्ठे कालः यस्य सः | | |
सपुत्रः /सहपुत्रः |
पुत्रेण सह वर्तते इति
(पुत्रेण सहितः ) |
|
सकुटुम्बः/सहकुटुम्बः | कुटुम्बेन सह वर्तते इति | | |
सकर्मकः |
कर्मणा सह वर्तते इति |
|
|
सलोमकः | लोम्ना सह वर्तते इति | | |
महायशस्कः /महायशाः |
महत् यशः यस्य सः(कप् is added because no other rule is applied to यश् when forming the compound)
|
|
उदात्तमनस्कः | उदात्तं मनः यस्य सः (कप् is added because no other rule is applied to मनस् when forming the compound) | |
कप् is also added when the last word is a ऋकारान्त in any gender, or is an ईकारान्त or उकारान्त स्त्रीलिङ्ग word | ईश्वरकर्तुकः | ईश्वरः कर्ता यस्य सः ( ऋकारान्त पुं .) |
सुशीलमातृकः | सुशीला माता यस्य सः (ऋकारान्तस्त्री .) | |
अन्नधातृकः | अन्नं धातृ यस्य सः ( ऋकारान्त नपुं .) |
|
सुन्दरवधूकः (Pl re check) | सुन्दरी वधू यस्य सः (ऊकारान्त स्त्री .) | |
रूपवत्स्त्रीकः
|
रूपवती स्त्री यस्य सः (ईकारान्त स्त्री .) |
7 अलुक् समासः
In cases where the विभक्तिः remains in theसमस्तपदम्, अलुक् समासः is seen. It can be any of the ones that we have studied in detail.
समस्तपदम् | विग्रहः | |
युधिष्ठिरः | युधि स्थिरः | सप्तमीतत्पुरुषः |
दूरादागतः | दूरात् आगतः | पञ्चमीतत्पुरुषः |
दासीपुत्रः | दास्याः पुत्रः | षष्ठीतत्पुरुषः |
गेहेशूरः | गेहे शूरः |
सप्तमीतत्पुरुषः
|
परस्मैपदम् | परस्मै पदम् | चतुर्थीतत्पुरुषः |
आत्मनेपदम् | आत्मने पदम् | चतुर्थीतत्पुरुषः |
कण्ठेकालः | कण्ठे कालः | व्याधिकरणबहुव्रीहिः |
वनेचरः | वने चरः |
उपपदसमासः
|
8. नञ्समासः
समस्तपदम्
|
विग्रहः | अर्थ |
असन्देहः | न सन्देहः | |
अविघ्नः | न विघ्नः | |
अनश्वः | न अश्वः | |
अनागमनम् | न आगमनम् | |
अविवादः | न विवादः | |
अपटुः | न पटुः | |
अनुपलब्धिः |
न उपलब्धिः
|
|
अपन्थाः /अपन्थम् | न पन्थाः | |
अपुत्रः | अविद्यमानः पुत्रः यस्य सः | |
अनपत्यः | अविद्यमानम् अपत्यं यस्य सः | |
अपुत्रीकः |
अविद्यमाना पुत्री यस्य सः
|
|
अप्रजाः | अविद्यमाना प्रजा यस्य सः | |
अमेधाः | अविद्यमाना मेधा यस्य सः | |
असहायः |
न विद्यते सहायः यस्य सः
|
|
अनपत्या | न विद्यते अपत्यं यस्याः सा | |
अनृणः |
न अस्ति ऋणं यस्य सः
|
9. उपपदसमासः
समस्तपदम् | विग्रहः | अर्थ |
कुम्भकारः | कुम्भं करोति इति | |
निशाकरः | निशां करोति इति | |
तुन्दपरिमृजः |
तुन्दं परिमार्ष्टि इति
|
|
उष्णभोजी | उष्णं भुङ्क्ते इति | |
सोमयाजी | सोमेन इष्टवान् इति | |
शास्त्रकृत् / शास्त्रकारः | शास्त्रं करोति इति | |
भाष्यकृत् / भाष्यकारः
|
भाष्यं करोति इति | |
प्रियंवदः | प्रियं वदति इति | |
भयङ्करः |
भयं करोति इति
|
|
वंशवदः | वंशं वदति इति | |
अभयकरः | अभयं करोति इति | |
धनदः | धनं ददाति इति | |
सामगः | सामं गायति इति | |
पण्डितमन्यः / पण्डितमानी | (आत्मानं ) पण्डितम् मन्यते इति |
Worksheets.
Just try and understand the following :
भगवद्गीतायां द्वादशाध्याये समासाः
एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते |
ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः ||१||
१ ) न क्षरम् - अक्षरम् | ( नञ् तत्पुरुषः )
२ ) न व्यक्तम् - अव्यक्तम् | ( नञ् तत्पुरुषः )
३ ) योगे वित्तमाः - योगवित्तमाः |( सप्तमी तत्पुरुषः )
सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः |
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः || ४ ||
१ ) समा बुद्धिः येषां ते - समबुद्धयः | (बहुव्रीहिः )
२) सर्वेभ्यः हितम् - सर्वहितम् , तस्मिन् - सर्वभूतहिते (चतुर्थी तत्पुरुषः )
अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रितः |
सर्वकर्मफलत्यागं ततः कुरु यतात्मवान्_ || ११ ||
१ ) मम योगम् - मद्योगम् | (षष्ठी तत्पुरुषः )
मद्योगम् आश्रितः – मद्योगमाश्रितः | (द्वितीया तत्पुरुषः )
२ ) सर्वाणि कर्माणि - सर्वकर्माणि | (कर्मधारयः )
सर्वकर्माणां फलानि - सर्वकर्मफलानि (षष्ठी तत्पुरुषः )
सर्वकर्मफलानां त्यागः - सर्वकर्मफलत्यागः, तम् – सर्वकर्मफलत्यागम् ( षष्ठी तत्पुरुषः )
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च |
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी ||१३ ||
१) सर्वे भूताः - सर्वभूताः, तेषाम् - सर्वभूतानाम् | (कर्मधारयः )
२) निर्गतं ममत्वं यस्मात् सः - निर्ममः | (प्रादि बहुव्रीहिः )
३ ) निर्गतं अहङ्कारः यस्मात् सः - निरहङ्कारः | (प्रादि बहुव्रीहिः )
४ ) दुःखम् च सुखं च - दुःखसुखे | (द्वन्द्वः )
समः दुःखसुखयोः यः सः - समदुःखसुखः | ( बहुव्रीहिः )
सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः |
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः || १४ ||
१) दृढः निश्चयः - दृढनिश्चयः | (कर्मधारयः )
दृढनिश्चयः यस्य सः - दृढनिश्चयः ( बहुव्रीहिः )
२) मनः च बुद्धिः च - मनोबुद्धि | (द्वन्द्वः )
अर्पितं मनोबुद्धि येन सः – अर्पितमनोबुद्धिः | (बहुव्रीहिः )
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः |
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः ||१५ ||
१) हर्षः च अमर्षः च भयं च उद्वेगः च - हर्षामर्षभयोद्वेगाः तैः | (द्वन्द्वः)
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः |
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः || १६ ||
१) न विद्यते अपेक्षा यस्मिन् सः - अनपेक्षः | (बहुव्रीहिः )
२) गता व्यथा यस्मात् सः - गतव्यथः | (बहुव्रीहिः )
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति |
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः || १७ ||
१) शुभं च अशुभं च - शुभाशुभे | (द्वन्द्वः )
शुभाशुभयोः परित्यागी यः सः - शुभाशुभपरित्यागी | (बहुव्रीहिः )
समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः |
शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः || १८ ||:
1) मानः च अपमानः च - मानापमानौ, तयोः - मानापमानयोः | (द्वन्द्वः )
२ ) शीतं च उष्णं च सुखं च दुःखं च, तेषु - शीतोष्णसुखदुःखेषु | (द्वन्द्वः )
३ ) सङ्ग: विवर्जितः येन सः - सङ्गविवर्जितः |(बहुव्रीहिः )
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी संतुष्टो येन केनचित् |
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः ||१९ ||
1) स्थिरा मतिः यस्य सः - स्थिरमतिः | ( बहुव्रीहिः )
We end Samasa Vichara here.
We now go to कारक विभक्ति प्रकरण from lessons 65 onwards
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